|| राग ललित ||१|
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सवैय्या छन्द |*|१|
सहारी तुमारी मुरारी करैंगे ||विश्राम||
अनुवाद : मुरारी तुम्हारी सहायता करेंगे ||विश्राम||
गवैंगे गुनैंगे स्मरैंगे सुनैंगे
पढ़ैंगे लिखैंगे जपैंहू करैंगे|
जतावैं जपावैं बतावैं बुझावैं
सबै को सुबानी सुदानै करैंगे||१|
अनुवाद : जो व्यक्ति इस ग्रन्थ को गायेंगे,
गुनेंगे (मनन करेंगे), सुनेंगे, (इस में वर्णित लीलाओं का) स्मरण करेंगे,
इस ग्रन्थ को स्वयं पढेंगे, (इस में वर्णित छन्द इत्यादि को प्रेम से) लिखेंगे या फिर मन
में जप करेंगे, जो व्यक्ति इस ग्रन्थ से कथा करके दूसरों को जप-पाठ करने के
लिए प्रोत्साहित करेंगे, (विशेष रूप से) इस
सुन्दर वाणी को पुस्तक के रूप में दूसरों को दान करेंगे–
|१|
होय सकाम करैं यदि सेवन
सो हरि जू परवान करैंगे|
अन्त सुखन्त भजन्त तरन्तहिं
सो जग में उपरन्त रहैंगे||२|
अनुवाद : वे व्यक्ति यदि किसी कामना को मन में रख कर यह सब सेवायें
करेंगे,
तो श्रीहरि उनकी धर्मसम्मत कामनाओं को पूरा करेंगे|
किन्तु अंत में वे सकाम भक्त भी गौरहरि की भक्ति को प्राप्त
करके सुखपूर्वक उनका भजन करेंगे एवं भवसागर से तर जायेंगे|
उस भजन के प्रभाव से शीघ ही उनका चित्त संसार एवं उसकी
कामनाओं से उपरामता को प्राप्त हो जाएगा|२|
जो निरकाम करैं यदि सेवन
सो हरि सेव सुकाम वरैंगे|
आकर मूल सुधर्म दिवाकर
सो जन के उर प्रान बसैंगे||३|
अनुवाद : जो व्यक्ति निष्काम भाव से (संकार की कामनाओं से रहित हो
कर) इन सब सेवाओं को करेंगे – तो उस सेवा के प्रसाद के फलस्वरूप वे सभी भक्त श्रीहरिसेवा
की सुन्दर कामना को वरण करेंगे| जो भगवान् सनातन धर्म के मूल हैं तथा उसका प्रचार-प्रसार
एवं रक्षा करने के लिए सूर्य के समान हैं– वे भगवान् उन भक्तों के ह्रदय में विराजित होंगे|३|
सो जन की हरि लाज रखैं नित
नाहि कबै जमफास परैंगे|
कृष्णहिं दास यही पद गावहि
सो हरि प्रेम प्रकास करैंगे||४|
अनुवाद : उन सभी व्यक्तियों के सम्मान की रक्षा भगवान् गौरांग-हरि
स्वयं करेंगे| वे व्यक्ति अंत समय में किसी भी प्रकार से यम-यातना के
अधिकारी नहीं होंगे| ‘कृष्ण दास’ इस पद का गायन कर रहे हैं की गौरांग महाप्रभु उन सब सज्जनों
के प्रति कृष्ण-प्रेम को प्रकाशित करेंगे|४|
प्रकाशिका वृत्ति नामक टीका: पञ्च-तत्त्व के नाम-धाम-गुण-लीला का सुप्रचार करना ही एक
मात्र सार है– इस बात को समझ कर जो प्रचार-प्रसार कार्य में प्रवृत्त होते
हैं–
उन पर प्रसन्न हो कर अवश्य ही गौरांग महाप्रभु उन के प्रति
कृष्ण-प्रेम का प्रकाश करते हैं– इस प्रकार से ‘कृष्ण-दास’ इस पद का गायन कर रहे हैं|