|| राग दरबारी ||१|
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दोहरा-छन्द ||१|
हरि पद ते गंगा भयो
तिस जल पुनि अभिसेक|
जो संतनि मुख हम सुनौ
निज मति करयो लेख||१|
अनुवाद : भगवान् श्रीहरि के चरण कमल से पतित पावनी गंगा जी प्रकट
हुई हैं, लेकिन उन्हीं गंगा जी के जल से ही श्रीहरि
(की मूर्ति तथा भगवान् शालिग्राम आदि) का अभिषेक किया जाता है| ऐसे ही जिन संतों के मुखकमल से हम ने (भगवान् गौरांग तथा नित्यानंद प्रभु
की महिमा के बारे में) जो कुछ भी सुना है, अपनी बुद्धि के
अनुसार इस ग्रन्थ में लिख दिया है|१|
सोहि ग्रन्थ अरपन करूं
वैष्णव कर-कमलार|
यही आस हरिगौर जस
फैले सब संसार||२|
अनुवाद : हम यह ग्रन्थ उन्हीं वैष्णवों के हस्त-कमल में अर्पण करते
हैं| हमारे मन में बस एक यही आशा है की किसी
प्रकार से गौरहरि का यश संसार भर में फैल जाए|२|